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लेखनी कहानी -01-Sep-2025

           भोला  की सरल ईश्वर भक्ति  

भोला एक अत्यन्त ही गरीब व असहाय मासूम सा लड़का है। भोला की उम्र लगभग बारह वर्ष की रही होगी उस समय भोला के माता-पिता का निधन गांव में फैले किसी अज्ञात बिमारी की चपेट में  आकर हो गई थी।तब से भोला अपने रिश्ते के भैया और भाभी के साथ उनके घर में रहने लगा । भोला बहुत परिश्रमी सरल शांत व खुशमिजाज आदमी है।
                   भोला अपने भैया के साथ मिलकर दिन भर खेतों में जाकर काम करता और शाम होते ही बंधी हुई गाय -बैलों की रस्सी खोल कर हांकता हुआ घरों की ओर चल पड़ता। भोला अपने भैया और भाभी को अपनी   पूरी संसार समझ बैठा था वह दिन भर उनके आगे  -पीछे घूमने लगता उनसे  प्रेम भरी बातें करता । हंसता और हंसाया करता भोला के इतने समर्पित होने के वाबजूद उसके भैया और भाभी उसे पराया  ही मानते थे। भोला बढ़ती उम्र में रहने की वजह से अपने जरुरत के हीसाब से अधिक खाना खा जाता था । भोला के भैया और भाभी उसके अधिक खाना खाने से परेशान हो कर उसे  एक दिन घर से धक्का मारकर  यह कहते हुए निकाल दिए कि अब हम तुम्हें और नहीं पाल सकते। तुम कहीं और चले जाओ। भोला अपनी बोरियां बिस्तर पकड़ कर वहां से निकल जाता है। दोपहर की चिलचिलाती धूप में वह चलते -चलते यमुना नदी की तट पर पहुंच गया। घाट से पानी पी कर भोला अपनी बोरियां  और बिस्तर  रख कर तट पर स्थित क़दम पेड़ की छाया में कुछ क्षण सुस्ताने के लिए बैठता है । थकावट के कारण जल्द ही उसके आंख लग जाती है और वह सो जाता है ।इधर शाम हो चला था ।
 और यमुना नदी के घाट पर  शाम की आरती शुरू हो गई थी। आरती की मधुर धुन भोला की कानों में गूंज पड़ी और भोला हड़बड़ा कर उठ बैठा सामने यमुना की तट पर मंदिर का पुजारी और अन्य शिष्यों का एक समूह मंगल आरती गा रहें हैं।भोला चेहरे पर हल्की सी मधुर मुस्कान लिए दोनों हाथ जोड़कर खड़ा था।
                    आरती खत्म होते ही सभी नगर वासी और मंदिर के पुजारी तथा शिष्य मंदिर की चौखट की ओर बढ़ने लगे तभी मंदिर के पुजारी की दृष्टि भोला पर जाती है। पुजारी भोला के समीप जाकर पूछने लगे बेटा तुम कौन हो और इतनी देर तक यहां क्या कर रहे हो । पुजारी के मुख से बेटा शब्द सुनकर भोला खुद को संभाल नहीं पाया और फफक-फफक कर रो पड़ा।  भोला की आशुओं ने पुजारी से बहुत कुछ कह दिया था । मंदिर का पुजारी एक समझदार और दयालु प्रवृत्ति का व्यक्ति हैं।वे भोला को अपने पीछे आने का इशारा कर मंदिर की ओर चल पड़े। भोला जल्दी - जल्दी अपने बोरियां और बिस्तर समेट कर पुजारी के पीछे दौड़ने लगा। पुजारी  ने मंदिर में जाकर भोला का परिचय मंदिर में रहने वाले अन्य शिष्यों से करवाया। भोला को सवेरे जल्दी उठकर स्नान आदि करके मंदिर परिसर में झाड़ू लगाने और मंदिर को धोने का काम मिला। भोला अपने र्कत्तव्य का पालन बहुत निष्ठा पूर्वक और प्रेम भाव से किया करता था।
                              भोला को अपने काम के प्रति जागरूक और सक्रिय देखकर मंदिर के सभी सदस्य उससे बहुत प्रसन्न थे । भोला भी  मंदिर में आकर बहुत खुश था । उसे यहां  खाने के लिए भरपेट भोजन मिल जाता । वह  जितना चाहे उतनी फल , मिठाइयां और प्रसाद के रूप में बनी खीर पुरी खा लेता । भोला जैसा चाहे वैसा मनमौजी जिंदगी जीने लगा है। समय गुजरता गया और महिना का पहला एकादशी   आ पहुंचा । एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है इस दिन मंदिर में अन्न  का  एक दाना भी नहीं बनता है। और न ही कोई प्रसाद भगवान के सामने भोग  लगाया जाता है।आज  मंदिर में सभी लोग एकादशी व्रत का उपवास करेंगे।भोला रोज़ की तरह आज भी जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर मंदिर के साफ़ -सफाई कर भगवान को भोग लगाने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा। मंदिर में खाना बनने के बाद प्रत्येक दिन एक निश्चित समय पर भगवान को भोग लगाया जाता है।आज एकादशी के दिन भोग लगाने का नित्य समय के गुजर जाने पर दु:खी  मन से भोला मंदिर के पुजारी के समक्ष जा कर पूछने लगा महंत जी आज भगवान को भोग कब लगेगी  भोग लगाने का वक्त गुजर गया। भोला की प्रेम भरी बातें सुनकर महंत जी मुस्कराते हुए बोले नहीं भोला आज भोग नहीं लगेगा आज एकादशी का व्रत है। आज मंदिर में सब का उपवास है।
                   भोला अपने दोनों हाथों को हिलाते हुए 
बोलने लगा उपवास  और मुझसे ना बाबा ना। मैं उपवास नहीं करुंगा मुझसे  खाली पेट नहीं रहा जाएगा। मुझे तो बस खाना चाहिए कैसे भी करके। महंत भोला की बातें सुनकर कहने लगे ठीक है।आज अपने लिए तुम नदी के किनारे जाकर खाना बना लेना और हां खाने से पहले भगवान के सामने भोग लगाने मत भूलना। इतना कहकर पुजारी अपने एक शिष्य को भोला के लिए चावल,दाल और कुछ रोटी बनाने के लिए गेहूं का आटा निकलवा कर दे देता है। भोला सारी सामग्री को पकड़ कर नदी के किनारे पहुंच गया और खाना बनाने के लिए लकड़ियां इकट्ठी कर चूल्हा जलाने लगा। घंटे दो घंटे में खाना , सब्जी और रोटी बन कर तैयार हो गया।
             ‌भोला एक थाली में कुछ रोटी और चावल दाल तथा सब्जी निकाल कर रख दिया और अपने दोनों 
हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और भगवान को पुकारने लगा भगवान राम आइए सीता राम आइए और भोजन पा जाइए । भगवान राम आइए सीता राम आइए और भोजन पा जाइए। घंटे भर समय बीत जाने पर भी जब भगवान भोग खाने नहीं आए तो भोला भगवान के उपर कटाक्ष मारते हुए कहने लगा  अच्छा खाने में  आज खीर -पुरी हलवा नहीं बना है  ।बस रुखी -सुखी रोटी सब्जी और चावल- दाल बना है इसलिए आप आज भोग खाने नहीं आ रहें हैं। भगवान भोला की करुणा भरी मधुर पुकार उसके निश्छल और सरल भक्ति भाव से प्रसन्न होकर मां सीता और भैया लक्ष्मण के साथ तीनों धरती पर भोला के बनाए हुए भोग को ग्रहण करने आ प्रकट हुए। भोला अपने सामने भगवान श्री राम मां सीता और भैया लक्ष्मण को देख कर हंसते हुए कहने लगा मैंने दो व्यक्तियों का भोजन बनाया और आप चलाकी दिखाते हुए अपने साथ अपने घर वालों को भी भोजन खाने के लिए ले आए। अगले बार ऐसा नहीं चलेगा आप आने से पहले मुझे बतला दीजिए गा । भगवान भोला की करुणा भरी बातें सुनकर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। भगवान मनुष्यों के ह्रदय में छुपे भाव और ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा से खुश होते हैं। समय गुजरता गया और महिना का दूसरा एकादशी आ पहुंचा ।भोला  इस बार भी एकादशी का व्रत नहीं करेगा ।वह मंदिर के पुजारी के समक्ष जा कर कहने लगा महंत जी आज थोड़ा ज्यादा  बढ़ा कर राशन दीजिए ।भगवान अपने संग अपने घर वालों को साथ लेकर खाना खाने आते हैं। और राशन कम पड़ जाती है।
                   भोला की मांग सुनकर महंत जी सोचने लगे भोला कितना लालची है । उसे यहां खाने पीने की कोई कमी नहीं होती है फिर भी उसे  आज खाने के लिए  कम हो रहा है। महंत चुपचाप उठ कर चावल दाल  सब्जियां और रोटी बनाने के लिए दो किलो आटा निकाल कर भोला के समीप रख दिया। और भोला की सच्चाई जानने के लिए  स्वयं नदी के किनारे जाकर झाड़ियों की ओट में छिपकर बैठ गया।ईधर भोला ने सारी सामग्री को उठा कर अपने  सिर पर रख कर नदी के किनारे पहुंचा और सोचने लगा भगवान रोज़ हमसे छल करते हैं आज मैं भगवान को बिना खाना बनाए ही बुला कर देखता हूं भगवान अपने संग कितनों को लेकर खाना खाने आएंगे। भोला अपनी दोनों हाथों को जोड़कर पुकारने लगा भगवान राम आइए सीता राम आइए और भोजन पा जाइए । भगवान राम आइए सीता राम आइए और भोजन पा जाइए। भोला की निश्छल भक्ति और करुणा भरी पुकार सुनकर भगवान खुद को रोक नहीं पाए और मां सीता सहित पूरा राम दरबार  भोग ग्रहण करने धरती पर आ प्रकट हुए । भोला अपने समक्ष पूरी राम दरबार को देख कर भगवान से कहने लगा भगवान  जब मैंने दो व्यक्तियों का खाना बनाया तो आप अपने संग अपने घर के दो अन्य सदस्यों को

लेकर आ गए इस लिए आज मैंने आपको बिना खाना बनाए ही बुला लिया। ताकि मैं देख सकूं कि आज आप अपने संग कितनों को लेकर आते हैं। आज आप जाकर मेरे लिए खाना बनाइए मैं थोड़ा बैठ कर आराम कर लेता हूं। भोला की मधुर आवाज़ उसकी निश्छल भक्ति के वश में आकर भगवान भोला के लिए खाना बनाने में जुट गए।
                          दूसरी तरफ मंदिर का पुजारी भोला की सच्चाई जानने के लिए झाड़ियों की ओट से बाहर निकल कर देखने लगा। पुजारी के आंखों से सब कुछ ओझल था। उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था।वह भोला से पूछने लगा भोला कहां हैं भगवान। तुमने मुझसे झूठ बोला।कि भगवान नदी के तट पर भोग  खाने आते हैं।भोला मंदिर के पुजारी से भक्ति भरे शब्दों में कहने लगा महंत जी वे रहे प्रभु श्री राम  और मां सीता चूल्हा के सामने बैठ कर सब्जियां काट रहे हैं और मां सीता खाना बना रही है । पास में भैया लक्ष्मन,  भरत और शत्रुघ्न तथा राम भक्त हनुमान खाना बनाने के लिए  लकड़ियां इकट्ठी कर रहे हैं। भोला की बातों को सुनकर मंदिर का पुजारी भाव विभोर होकर रोने लगा और रोते हुए भोला से कहने लगा भोला मैंने इतनी सालों से ईश्वर की भक्ति की फिर भी भगवान  मुझसे खुश नहीं हुए और तुम्हारी सरल भक्ति से खुश होकर वे तुम्हें दर्शन ही नहीं दिए बल्कि तुम्हारे लिए खाना भी बनाया।हे भोला एक बार भगवान श्री राम से कहो न कि वे मेरे पापों को क्षमा कर मुझे अपनी दास बना लें और मुझे भी दर्शन दें। मंदिर के पुजारी को बार-बार भाव विभोर होकर रोते बिलखते हुए देख कर भगवान को महंत के उपर दया आ जाती है और उसके आंखों से प्रदा हटा देते हैं। महंत अपने समक्ष पूरी राम दरबार को देख अत्यन्त भाव विभोर होकर प्रभु श्री राम  के चरणों में  बार -बार साष्टांग प्रणाम करता रहा और भोला को ईश्वर से मिलाने के लिए तहेदिल से शुक्रिया अदा  भी किया। महंत अन्न जल त्याग कर ईश्वर भक्ति में  पूरी तरह से लीन हो गए।
सच ही है भगवान ह्रदय में छुपे निश्छल भाव से प्रसन्न होते हैं ना कि दिखावा की भक्ति से।

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